Firaq Gorakhpuri Shayari in Hindi :- नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है, आजके ईस नये पोस्ट मे। हम आशा करते है की आप सब एकदम स्वस्थ और मस्त होंगे। आज हम आपके लिए Firaq Gorakhpuri Famous Shayari हिंदी मे लेके आये है। आपको यहाँ पर बेस्ट फ़िराक़ गोरखपुरी की शायरी मिल जाएगी।
दोस्तों फ़िराक़ गोरखपुरी उर्दू भाषा के महान रचनाकारों में से एक हैं। जिन्हें उनकी शायरी के उपनाम से अधिक जाना जाता है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ था। फिराक गोरखपुरी का असली नाम रघुपति सहाय था। फ़िराक़ जी की शिक्षा रामकृष्ण की कहानियों से शुरू हुई थी, और उन्होंने अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी भाषाओं में भी शिक्षा प्राप्त की थी। फिराक गोरखपुरी एक भारतीय कवि, निबंधकार, शायर और अंग्रेजी के शिक्षक थे। फिराक गोरखपुरी को शादी में धोखा मिला था। परिवार के ही करीबी ने धोखे से उनकी शादी कर वाई थी। फिराक को शायरी के दुनिया का बेताज बादशाह कहा है।
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Firaq Gorakhpuri Shayari in Hindi
ये कैसी ख्वाहिश है के मिटती ही नहीं,
जी भर के तुझे देख लिया फिर भी,
नजर हटती नहीं।
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास,
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं।
अब तो उन की याद भी आती नहीं,
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ।
मौत का भी इलाज हो शायद,
जिंदगी का कोई इलाज नहीं।
न कोई वादा न कोई यक़ीं न कोई उमीद,
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था।
आए थे हँसते खेलते मय-खाने में फिराक,
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए।
जिस में हो याद भी तिरी शामिल,
हाए उस बे-ख़ुदी को क्या कहिए।
असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का,
तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ।
फ़िराक़ गोरखपुरी की शायरी
शाम भी थी धुआँ धुआँ, दिल भी था उदास उदास,
दिल को कई कहानियाँ याद सी आके रह गईं।
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई ना हमें,
और हम भूल गए तुझे ऐसा भी नहीं।
कम से कम मौत से ऐसी उम्मीद नहीं,
ज़िन्दगी तूने धोखे पे दिया है धोखा।
कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम,
उस निगाह-ए-आश्ना को क्या समझ बैठे थे हम।
तबियत अपनी घबराती है जब सूनसान रातों में,
हम ऐसे में तेरी यादों की चद्दर तान लेते हैं।
तुम इसे शिकवा समझकर किस लिये शरमा गये,
मुद्दतों के बाद देखा था तो आंसू आ गये।
बहुत पहले से उन कदमों की आहत जान लेते हैं,
तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं।
तिरी निगाह सहारा ना दे तो बात है और,
कि गिरते गिरते भी दुनिया सम्भल तो सकती है।
Firaq Gorakhpuri Famous Shayari
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो,
तुम को देखें कि तुम से बात करें।
कोई समझे तो एक बात कहूँ,
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं।
मैं हूँ दिल है तन्हाई है,
तुम भी होते अच्छा होता।
हम से क्या हो सका मोहब्बत में,
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की।
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में।
सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग,
हम लोग भी फ़क़ीर इसी सिलसिले के हैं।
बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा’लूम
जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई।
रात भी नींद भी कहानी भी,
हाए क्या चीज़ है जवानी भी।
Firaq Gorakhpuri Shayari
कोई नयी ज़मीं हो, नया आसमाँ भी हो,
ए दिल अब उसके पास चले, वो जहाँ भी हो।
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिजार में,
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात।
मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बगैर,
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो खैर।
दिलों को तेरे तबस्सुम की याद यूँ आई कि,
जगमगा उठें जिस तरह मंदिरों में चराग़।
मुस्कुराहट पर तो हजारों फिदा होते हैं,
बात तो तब बने जब आँसुओ का भी,
कोई हिस्सेदार हो।
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी।
दर्द को हंसकर जीना क्या,
सीख लिया सबको लगा,
मुझे तकलीफ नही होती।
ख़ैर सच तो है सच मगर ऐ झूठ,
मैंने तेरा भी एतिबार किया।
Firaq Gorakhpuri Best Shayari
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में।
वो रातों-रात ‘सिरी-कृष्ण’ को उठाए हुए,
बला की क़ैद से ‘बसदेव’ का निकल जाना।
असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का,
तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ।
छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं,
निगाह-ए-नर्गिस-ए-राना तिरा जवाब नहीं।
बिजली की तरह लचक रहे हैं लच्छे,
भाई के है बांधी चमकती रखी।
मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले,
दी सज़ा इश्क़ ने हर जुर्म-ओ-ख़ता से पहले।
बहसें छिड़ी हुई हैं हयात ओ ममात की,
सौ बात बन गई है ‘फ़िराक़’ एक बात की।
अक़्ल में यूँ तो नहीं कोई कमी,
इक ज़रा दीवानगी दरकार है।
Firaq Gorakhpuri Ki Shayari
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त,
तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई।
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है,
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी।
जो उन मासूम आँखों ने दिए थे,
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ।
तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल,
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं।
ये माना ज़िंदगी है चार दिन की,
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी।
तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में,
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं।
इक फ़ुसूँ-सामाँ निगाह-ए-आश्ना की देर थी,
इस भरी दुनिया में हम तन्हा नज़र आने लगे।
शक्ल इंसान की हो चाल भी इंसान की हो,
यूँ भी आती है क़यामत मुझे मा’लूम न था।
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